मेरी कविता
August 26, 2019
जीवन
जीवन
जीवन का रूप है बड़ा ही विचित्र
लगता नहीं मुझको ये कहीं से पवित्र
जीवन का सुख है बस आँखों का धोका
इसने सबको है संसार के मायाजाल में झोंका
बुझ रही आँखों की रौशनी
हो रही है हर घरों में कहा-सुनी
कत्लगाह बन रही है ये जमीन
गर्त से से मिलने लगी है अब ममी
वसुधा रो रही है सिसक-सिसक कर
बच्चा चूस रहा है भूखी माँ का दूध चिपक-चिपक कर
ये जीवन एक पहेली है शत्रु नहीं सहेली है
फिर भी ⇛
जीवन का रूप है बड़ा ही विचित्र
जीवन का रूप है बड़ा ही विचित्र
लगता नहीं मुझको ये कहीं से पवित्र
कवि:-सुनील कुमार