जीवन
जीवन का रूप है बड़ा ही विचित्र
 लगता नहीं मुझको ये कहीं से पवित्र 
 जीवन का सुख है बस आँखों का धोका 
 इसने सबको है संसार के मायाजाल में झोंका 
 बुझ रही आँखों की रौशनी 
 हो रही है हर घरों  में कहा-सुनी 
 कत्लगाह बन रही है ये जमीन 
 गर्त से से मिलने लगी है अब ममी 
 वसुधा रो रही है सिसक-सिसक कर  
 बच्चा चूस रहा है भूखी माँ का दूध चिपक-चिपक कर  
 ये जीवन एक पहेली है शत्रु नहीं सहेली है 
 फिर भी ⇛ 
जीवन का रूप है बड़ा ही विचित्र
जीवन का रूप है बड़ा ही विचित्र
 लगता नहीं मुझको ये कहीं से पवित्र 


कवि:-सुनील कुमार
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