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Monday, August 26, 2019

August 26, 2019

जीवन



जीवन


 जीवन का रूप है बड़ा ही विचित्र
 लगता नहीं मुझको ये कहीं से पवित्र

 जीवन का सुख है बस आँखों का धोका
 इसने सबको है संसार के मायाजाल में झोंका
 बुझ रही आँखों की रौशनी
 हो रही है हर घरों में कहा-सुनी

 कत्लगाह बन रही है ये जमीन
 गर्त से से मिलने लगी है अब ममी
 वसुधा रो रही है सिसक-सिसक कर
 बच्चा चूस रहा है भूखी माँ का दूध चिपक-चिपक कर  
 ये जीवन एक पहेली है शत्रु नहीं सहेली है

फिर भी ⇛
जीवन का रूप है बड़ा ही विचित्र
लगता नहीं मुझको ये कहीं से पवित्र
 जीवन विचित्र  है

 जीवन विचित्र  है
                             
                                                                                         
   कवि:-सुनील कुमार