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Tuesday, September 3, 2019

ख़ामोशी

ख़ामोशी ही ख़ामोशी है मेरे इस संसार में
कौतुहल है कहीं ना मेरे इस घरबार में

एक पल में ही हो गयी सारी उम्मीदें तबाह
हर वर्ष हर मौसम है ना जाने क्यूँ हमसे खफा खफा
दुःख की बदली है रही है
मेरे इस खुराफात पर
आंखे है पर भटक रहा है
मेरा जीवन अंधकार में

ख़ामोशी ही ख़ामोशी है मेरे इस संसार में
कौतुहल है कहीं ना मेरे इस घरबार में

लाखों की भीड़ में थोड़ी सी खुशी न तलाश कर सका मैं
हर घड़ी हर समय ना जी सका हूँ मैं और ना ही मर सका हूँ मै
क्या कहें अब कहा जाता नहीं
दर्द है इतना की अब सहा जाता नहीं

इसलिए-
ख़ामोशी ही ख़ामोशी है मेरे इस संसार में
कौतुहल है कहीं ना मेरे इस घरबार में।


 कवि:-सुनील कुमार

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