बेवफा
न ठहरा हूँ न रफ़्तार में हूँ
न जाने किस संसार में हूँ
छुपी खिड़की हूँ,मुझे ढूंढिएगा
मैं आँगन की हर एक दिवार में हूँ
मोह्हबत हूँ मुझे जानोगे कैसे
मई पानी हूँ मगर अंगार में हूँ
मेरा ही वॉर मुझे कर ऐ जालिम
अभी-भी मैं तेरे तलवार में हूँ
बहुत कम बोलता हूँ उससे अब मैं
मोह्हबत में हूँ या तकरार में हूँ
मेरी रुस्वाइयाँ रहनी थी मुझ तक
तो क्यों कहा सरकार मैं हूँ
मुझे भी ब्रह्म कहती है ये दुनियाँ
मैं हर एक शब्द के अवतार में हूँ
मैं तुझसे मिल नहीं पाउँगा तब तक
बेवजह ,जब तक कि मैं इस संसार में हूँ
कवि :- सुनील कुमार
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