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Tuesday, September 3, 2019

मेरा सफर

 कैसे भूलूं मैं ये सफर
 मेरा सफर पहला सफर
 कैसे भूलूं मैं ये सफर
 दो फूलों की खुश्बुओं का
 छाया रहा मुझपर असर
 नजर को अपनी आवाज़ बनाकर
 करती रहीं बातें मुझसे
 पर मै था अपनी धुन में खोया
 मई था उनसे बेखबर

मेरा सफर पहला सफर

 कैसे भूलूं मैं ये सफर

आँखों में है उनकी तस्वीर
कानो में गूजती है उनकी आवाज़ 
 दुःख तो है बस इस बात का  
मै न जानू उनका आवास
 उनकीं याद ढा रही है मुझपर कहर
 ये जीवन कहीं बन जाये न एक ज़हर
  क्या करुं ऐ हमसफर
 तू ही है मेरा पहला सफर


मेरा सफर पहला सफर
 कैसे भूलूं मैं ये सफर

 कवि:-सुनील कुमार

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