पहली मुलाकात
फूल भी झुक गए शर्म से
वो जो गुजरे बगिया के राहों से
कहते है हम झूठ अगर तो
कोई पूछ ले इन हवाओं से
घटाएं जो ढल रही थीं कालामय होकर
उनके चेहरे की चमक को देखकर
वो भी अपना रंग बदल रही हैं
मुर्झायी हुई कलियाँ भी अब नरम हो रही हैं
शुक्र है उनसे मेरी मुलाकात ही कम हुई
दुःख तो कम हुआ उनसे बिछड़ने का
बस थोड़ी सी आँखे ही नम हुई
अब नहीं मिलती ख़ुशी भी इन नजारों से
क्योकिं उठ गयी है डोली उनकी
कोई पूछ ले इन कहारों से.
कवि:-सुनील कुमार
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