मेरी कविता
अक्ल सोच रही है कविता लिखना सीखूँ
पर पता नहीं समझ में किसपे क्या लिखुँ
दादा की तारीफ पे लिखुँ,या चैपल की हर पे
सनी की आवाज पे लिखुँ,या पापा कि मार पे
बेटियों के भर पे लिखुँ,या लाइफ के दिन चार पे
अक्ल सोच रही है कविता लिखना सीखूँ
पर पता नहीं समझ में किसपे क्या लिखुँ
गुरु ग्रेग को मारा चांटा,
बिकने लगा है अब मिलावटी आटा
बिकने लगा है अब मिलावटी आटा
लेने लगा हूँ अब मै भी खर्राटा
इस पर मम्मी ने है मुझको डाँटा
अक्ल सोच रही है कविता लिखना सीखूँ
पर पता नहीं समझ में किसपे क्या लिखुँ
कोयल की कुक पे लिखुँ,या रोटी की भूख पे
सूरज की धुप पे लिखुँ,या धरती के रूप पे
गरीबों पे दुख लिखुँ,या अमीरो के सुख पे
अक्ल सोच रही है कविता लिखना सीखूँ
पर पता नहीं समझ में किसपे क्या लिखुँ
कश्मीर की सुंदरता पे लिखुँ,या विज्ञान की हैरानी पे
चोर की चतुरता पे लिखुँ,या शमशान की वीरानी पे
पूर्वजों की आदरता पे लिखुँ,या शहीदों कुर्बानी पे
देश रही निरक्षरता पे लिखुँ, या ममता की कहानी पे
ढेर सारे विकल्प है इतने जिसपे कलम को,
फिर भी अक्ल सोच रही है कविता लिखना सीखूँ
फिर भी अक्ल सोच रही है कविता लिखना सीखूँ
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