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Friday, September 13, 2019

दिल का क्या कसूर

दिल का क्या कसूर  


हम तेरी याद से खुद को बचा ना सके
और तेरी दोस्ती को छुपा ना सके
ये भी मालूम था कि पा ना सकेंगे तुम्हे
मगर फिर भी उम्मीद के दिए को बुझा ना सके
कितनी हसरत थी , कि कह दूँ , तुम बिन जी नहीं सकते
मगर सामने तेरे सर उठा ना सके
तुम भी तो जानकर ही अनजान से बन गए
और हम भी तुम्हे हाले दिल बता ना सके
लाख कोशीश कि दिल ने, कि भूल जाऊ तुझे
मगर एक दिन भी तुझे भुला ना सके

मजबूर आशिक के दिल की बात

न जीने की ख्वाहिश है , न मरने का इरादा
क्या करें हम दर्द है बहुत ज्यादा
इन बहते हुए आंसुओं कि कसम
न भूल पाएंगे तुझे ये है वादा
दिल की कसक तुझे महसूस नहीं होती
वक़्त भीं है दूरी बढ़ाने पे आमादा
दर है तुझसे तेरी यादों से बर्बाद न कर दे हमे
खुद बेफिक्र रहो खुदी में , कही तेजाब न कर दे हमे
सम्भालो हमे अभी बाद की मत सोचो
जिंदगी फिसल गयी तो , किताब में बंद न कर देना हमें  


कवि:- सुनील कुमार 

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